ग्रीष्मकालीन तिल की खेती: कम दिनों में मिलेगा बम्पर उत्पादन! ; तिल एक कम दिन का और महत्वपूर्ण फसल है। कम समय में तैयार होने के कारण, इसकी खेती एकल फसल, अंतरफसल (Intercropping), या मिश्रित फसल के रूप में की जा सकती है। ग्रीष्मकालीन तिल की सफल खेती के लिए आवश्यक उन्नत जानकारी निम्नलिखित है:
■ तिल का महत्व (Importance of Sesame)
तिल के बीजों में 45 से 50% तक तेल की मात्रा होती है। इसका उपयोग मुख्य रूप से खाद्य तेल, औषधीय तेल, सुगंधित तेल, साबुन, रंग, और हमारे पारंपरिक तिल-गुड़ एवं चटनी बनाने के लिए किया जाता है।
■ जलवायु और मिट्टी (Climate and Soil)
जलवायु: तिल के अच्छे अंकुरण के लिए न्यूनतम 15
∘C तापमान आवश्यक है। फसल की वृद्धि के लिए 21 से 26
∘C और अच्छी फली लगने के लिए 26 से 32
∘C तापमान अनुकूल होता है।
मिट्टी: अच्छी जल निकासी वाली और पानी जमा न होने देने वाली सभी प्रकार की मिट्टियों में तिल की फसल ली जा सकती है। तिल का बीज बारीक होने के कारण, मिट्टी का अच्छी तरह से भुरभुरा (friable) होना महत्वपूर्ण है।
■ बुवाई से पहले की तैयारी (Pre-Sowing Management)
खेत को तैयार करते समय एक से दो बार कल्टीवेटर (कुळवा) की जुताई करें और अंत में पाटा (फळी) चलाकर जमीन को समतल और भुरभुरा बना लें।
बुवाई से पहले खेत में अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद (प्रति हेक्टेयर 5 टन या 10 से 15 गाड़ी) मिलाएँ।
■ बुवाई और बीज (Sowing and Seed)
बुवाई का समय: ग्रीष्मकालीन तिल की बुवाई अधिकतम फरवरी माह के पहले पखवाड़े तक पूरी कर लेनी चाहिए। बुवाई में देरी होने पर, फसल की कटाई के समय प्री-मानसून बारिश (मान्सूनपूर्व पाऊस) की चपेट में आने का खतरा रहता है।
बीज की मात्रा: प्रति हेक्टेयर 4 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है।
बुवाई की विधि: बीज बहुत बारीक होने के कारण, वह सघन रूप से न गिरे इसके लिए, बुवाई करते समय बीज में समान अनुपात में बारीक रेत, छनी हुई गोबर की खाद, राख, या मिट्टी मिला लेनी चाहिए। एकल खेती के लिए, तिफन से 30 सेमी की दूरी पर बुवाई करें। ध्यान रहे कि बीज 1 इंच से ज्यादा गहरा न पड़े।
बीज उपचार (Seed Treatment): बुवाई से पहले, बीज को 3 ग्राम कार्बेंडाजिम और 4 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करने पर मिट्टी से होने वाली बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।
■ उन्नत किस्में (Improved Varieties)
ग्रीष्मकालीन मौसम के लिए, डॉ. पंजाबराव देशमुख कृषि विद्यापीठ ने एकेटी-101 और एनटी-11-91 (या एनटी-11-11) किस्मों की सिफारिश की है। ये किस्में 90 से 95 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं और सफेद दानों के कारण इनका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 8 क्विंटल तक मिलता है।
■ उर्वरक और जल प्रबंधन (Fertilizer and Water Management)
उर्वरक (खाद): मिट्टी परीक्षण के अनुसार उर्वरकों की मात्रा दें। सामान्य तौर पर, नाइट्रोजन (N) 50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर देना चाहिए।
पहली मात्रा: बुवाई करते समय 12.5 किलोग्राम नाइट्रोजन और 25 किलोग्राम फास्फोरस (P) दें।
दूसरी मात्रा: शेष 12.5 किलोग्राम नाइट्रोजन बुवाई के 21 से 30 दिनों बाद दें।आवश्यकतानुसार जिंक (जस्ता) और सल्फर (गंधक) प्रत्येक 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दें।
पानी (जल): हालाँकि यह फसल पानी का तनाव सह सकती है, लेकिन ग्रीष्मकालीन मौसम में सिंचाई की पालियाँ देना आवश्यक है। मिट्टी की नमी के अनुसार 12 से 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करें।
सबसे महत्वपूर्ण: फसल में फूल आने और फलियाँ बनने (फली लगने) की अवस्था में पानी का तनाव न आने दें। इस अवधि में पानी देना अत्यंत आवश्यक है।
■ अंतर-खेती और विरलीकरण (Inter-cultivation and Thinning)
विरलीकरण (Thinning): बुवाई के 15 से 20 दिनों बाद पहला और 8 दिनों बाद दूसरा विरलीकरण करके दो पौधों के बीच 10 से 15 सेमी का अंतर रखें। इससे खेत में प्रति हेक्टेयर लगभग 2.25 से 2.50 लाख पौधों की संख्या बनी रहती है।
खरपतवार नियंत्रण (Weed Control): आवश्यकतानुसार 2 से 3 बार निराई-गुड़ाई (कोळपण्या) करें और हाथ से निंदाई करें। फसल के एक महीने का होने तक खेत में खरपतवार न हों, इसका विशेष ध्यान रखें।